ऐसे कई मित्र हैं जो बिल्डिंग प्लानिंग/डिजायन और आर्किटेक्चर के क्षेत्र में काम करते हैं,हम कई बार बात करते हैं कि कैसे आजकल शहरी क्षेत्रों में “दड़बा कल्चर” विकसित हो रहा है,यानी पुराने समय मे जहाँ लोग रोशनदान और प्राकृतिक हवा के सर्कुलेशन को महत्व देते थे वहीं आज लोग मुर्गी के दड़बे की तरह घर बनाना चाहते है,ये घर प्राकृतिक हवा के आवागमन से ज्यादा आर्टिफिशियल कूलिंग और हीटिंग के हिसाब से ज्यादा मुफ़ीद होते हैं, इनमें व्यक्ति इनको डिजायन ही एयरकंडीशन और गीज़र/ हीटर जैसे इक्विपमेंट्स को ध्यान में रख कर के करवाता है(चाहे वो इन्हें बाद में लगवाए),वैसे बताना जरूरी है की इन सबके लिए बाज़ार में भी इन इक्विपमेंट को बेचने वाली कम्पनियों ने बड़े अच्छे एनिमेशन्स और अपनी फोर फ्रंट मार्केटिंग से यकीन दिलवा दिया की आपको शुद्ध हवा की गारंटी हमारी है।

इन मानसिकताओं ने एक ओर जहाँ बिल्डिंग्स में बिजली की खपत में बढोत्तरी की,कार्बन उत्सर्जन बढ़ाया वहीं दूसरी ओर शहरी क्षेत्रों में आपको वयस्क तो छोड़िये छोटे बच्चों में भी लो इंडोर एयर क्वालिटी की वजह से अस्थमा,तनाव,शुगर और बीपी जैसी समस्याएं देखने को आज आसानी से मिल जाएंगी,कोरोना महामारी में लोग कई प्रमाणिक व अप्रमाणिक उपायों के साथ सामने आये इन्ही में से एक है आक्सीजन के लिए पीपल के पेड़ कर कुर्सी लगाने का बहरहाल इस बात पर कई लोग हंस सकते हैं मगर आपको यहाँ जान लेना आवश्यक है की सन 1982 में जापानी सरकार ने अपने यहाँ “शिनरिन योकू” नाम का एक राष्ट्रीय कार्यक्रम चलाया था जिसके अंतर्गत जापान में वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित “फॉरेस्ट बाथिंग” नाम की थेरेपी कई वर्षों से प्रचलित है वहाँ पर फॉरेस्ट बाथिंग क्लब्स भी बने हुए हैं, अध्ययन ये बताते हैं की पेड़ो के मात्र पास रहने से ही आपको शारीरिक वा मानसिक रूप से स्वस्थ रहने में आश्चर्यजनक रूप से मदद मिलती है,स्वयं अंतराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात भारतीय योग में प्राचीन भारतीय विज्ञानियों द्वारा सदियों पहले श्वास की महत्ता विस्तृत रूप से परिभाषित है।

किंतु विडंबना देखिए 17वीं सदी में खोजी गयी गैस का असल मतलब एक महामारी ने 21वीं ने समझाया,पैदा होने के बाद मुफ़्त मिल रही एक एक सांस की भी कीमत हो सकती है ये हमारी पीढ़ी से बढ़कर शायद अब कोई न समझे मगर एक बार अपने स्वयं के घर और आस पड़ोस के घरों को ध्यान से देखिए आपको लगेगा की अधिकतर लोगों ने अपने गैस चैंबर और कंसेंट्रेशन कैम्प ख़ुद बनाये हैं और वो ऐसे कृत्रिम वातानुकूलन का आंनद ले रहे हैं जिसमें एक ओर पर्यावरण घुट रहा है और दूसरी तरफ वे खुद,खैर जाहिर है सुविधाओं के आगे पर्यावरण की तो किसी को नही पड़ी मगर प्रश्न अब ये है की क्या यही विचार आपके अपने बारे में भी हैं?

By-

Awdhesh Kumar

Assistant Professor(Civil Engineering) l Nodal Officer(Disaster Management) at Invertis University(Uttar Pradesh) l Asst. Editor Invertis Journal of Science & Technology(IJST) | Member-SAADRI(Individual), IRCS(L), SES(L)